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आईआईटी, आईआईएम और जेएनयू

भीड़ में इन्सान को पहचाना कठिन होता है। इंसानों को उनके कर्मों से पहचाने के लिए काफी वक्त चाहिए जो अमूमन लोगों के पास नहीं होता। इसलिए जमाना तमगों का है। हम क्या हैं वह ‘हम’ नहीं बल्कि हमारे ठप्पे तय करते हैं।