महामारी में इश्क

जब चारों दिशाओं में हाहाकार मचा हो और हर तरफ से दुख की ही खबरें आ रहीं हो तब एक व्याकुल मन रोशनी तलाशने निकलता है। वो जानता है की रोशनी के बिना अंधकार असंभव है। एक ऐसी ही रोशनी की लघु कथा।

“तुम्हारी साँसें ठीक चल रही है अब?”

“हाँ, अब ठीक है। मुझे तो लगा था मैं मर जाऊँगी। तुम्हारे इश्क ने बचा लिया। वैसे ये बेड मिला कैसे? बीमार तुम लग रहे थे और भर्ती मुझे कर दिया।”

“वो सब छोड़ो। फिजूल की बातों में अपनी ताकत बर्बाद मत करो।“

“ठीक है! ठीक है! हिमांशु… तुम हो कहाँ अभी?”

“यहीं, अस्पताल के बाहर।“

“तुम ठीक तो हो ना।“

“हाँ, ठीक हूँ। थोड़ी खाँसी है बस। घर जाना चाहता हूँ पर भाई कह रहा है मुझे भी अस्पताल में भर्ती हो जाना चाहिए।“

“सही तो कह रहा है!“

“हाँ, पर यहाँ बेड नहीं हैं। मुझे डीआरडीओ वाले अस्पताल जाना होगा। पर वहाँ फोन नहीं ले जा सकते इसलिए शायद कुछ दिन तक फोन नहीं कर पाऊँगा।“

“कोई बात नहीं, पूरी जिंदगी है बातें करने को। तुम जल्दी ठीक हो जाओ बस!”

“ठीक है, अपना खयाल रखना। अभी चलता हूँ, भाई गाड़ी ले कर आ गया है। बाय!“

“बाय स्वीट्हार्ट!”

फोन बंद करते ही खाँसी का दौर ऐसे शुरू हुआ मानो कोई तूफान आ गया हो। टूटती हुई साँसे यूँ बिखरने लगी मानो कच्चे धागे में पिरोई हुई माला। हिमांशु ने निराश मन से अस्पताल के मुख्य द्वार की ओर देखा। वहाँ उस जैसे कई लोग बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे – किसी के ठीक होने या मरने का। पर इंतज़ार का वक्त नहीं था हिमांशु के पास। अपने शरीर को संभाल सकने की ताकत खत्म हो चुकी थी उसकी। पर चेहरे पर एक भीनी मुस्कान थी – मुस्कान उम्मीद की कि वो एक उम्मीद जगा कर जा रहा है!

9 Responses

  1. Prashant says:

    संक्षिप्त होते हुए भी काफी भावुक। हिमांशु की मनोदशा जैसे गूँज रही हो।

  2. vivek says:

    nice one..

  3. Divya says:

    सारी कहानियां अपनी लगती हैं।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति

  4. कमल जोशी says:

    बहुत कम शब्दों में गहरी बात कहने की क्षमता है ❤

  5. मंजु पांगती says:

    बहुत भावपूर्ण कथा

  6. Mihir Tewari says:

    टूटती हुई साँसे यूँ बिखरने लगी मानो कच्चे धागे में पिरोई हुई माला….love it

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