हार जाना तुम मेरी आँखों के तारे

बच्चों की होमस्कूलिंग हमारे लिए एक अभूतपूर्व निर्णय था। बच्चे भी हमारे इस निर्णय का औचित्य समझ नहीं पा रहे थे। ऐसे में मैंने होमस्कूलिंग पर एक कविता लिखी जो हमें याद दिलाती रहे कि जो हम कर रहे है वो क्यों कर रहे हैं।

जब हमने होमस्कूलिंग, या स्वशिक्षण, का निर्णय लिया तब बड़ी बेटी कक्षा दो में थी और छोटी कक्षा एक में पदार्पण करने की तैयारी कर रही थी। दोनों अपने वैकल्पिक विद्यालय से खुश थे। क्योंकि वे तार्किक रुप से हमारा निर्णय समझने की स्थिति में नहीं थे, हमने उनसे बस यह कहा कि “घर में ज्यादा मज़ा आएगा!”। इस मौके को यादगार बनाने और अपने वादे को साबित करने के लिए हमने कश्मीर घूमने जाने का निर्णय लिया ताकि बच्चे बर्फवारी का आनंद ले सकें।

होमस्कूलिंग का निर्णय लेने से पहले दीप्ति और मैंने इस विषय पर बहुत चर्चा की। यह कविता हमारे ध्येय का प्रारूप बनी – हमारा लक्ष्य निर्धारित करती हुई। इस सफर में दस साल से अधिक बीत चुके है पर यह कविता अब भी हमारे लिए एक मूल मंत्र की तरह है – केवल होमस्कूलिंग ही नहीं अपितु सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था के लिए। आज यह कविता साझा करने का कारण बड़ी बेटी है जो घोंसला छोड़ कर खुले आकाश में उड़ने के लिए अपने मनपसन्द कोर्स व कॉलेज में जीवन का अगला दौर शुरू कर रही है।

हार जाना तुम मेरी आँखों के तारे

सुनना नित निज हृदय की धड़कन,
स्पष्ट देख और छू कर चलना;
समानुभूति के कोमल कदमों से,
अनुभव कर चलना, समझ के चलना।

हार जाना तुम मेरी आँखों के तारे,
मत दौड़ना इस निरर्थक होड़ में;
सुनना नित निज हृदय की धड़कन,
इस प्रतिस्पर्धा और संघर्ष के शोर में।

बराबरी की बराबरी कोई बराबरी नहीं,
धैर्य से, प्रेम से, तुम सन्तुष्टता से चलना;
हार जाना इस दौड़ में तुम, मेरी आँखों के तारे,
अनुभव सुखद समेट बस सम्पूर्णता से चलना।

***

जो साथी हिन्दी पढ़ नहीं सकते हैं उनके लिए इस कविता का अंग्रेजी अनुवाद भी किया है। अंग्रेजी अनुवाद पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें. Click here to read the English version of this poem – Please choose to lose this race my child!

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8 Responses

  1. Deepak says:

    सर आपने हमारे समाज को नई दिशा दी है।

  2. प्रशांत says:

    अब क्या कहें । आपके शब्द, भावनाएं ….. मेरी हस्ति की सीमायें बहुत छोटी प्रतीत होती हैं।

  3. Shankar Datt says:

    आप लोगों का चिंतन और यात्रा प्रेरित करती है. आप से मिलकर जीवन के इस नजरिये को और अधिक नजदीक से महशूस करना चाहता हूँ !!

  4. स्वाति मेलकानी says:

    मैं भी कुछ इसी तरह महसूस करती हूँ | पर क्या यह एकांत बच्चे को वास्तविक समाज से दूर नहीं कर देगा ?
    भ्रम और निराशा का मिला जुला दौर है |
    कभी बात कर सकते हैं |
    शायद यह कोहरा कुछ छंट सके |

    • किसी भी चीज का एक सम्पूर्ण हल नहीं होता। ये सब अलग अलग रास्ते हैं। जिसको जो फले वही उसका सही रास्ता है।

  5. बटरोही says:

    यह एक मौलिक और अनूठा कदम था, जिसके बारे में पहले खूब सुना था. हर व्यक्ति चीजों को अपने ढंग से देखता-परखता है, समय आने पर ही इनका उत्तर मिलता है और ये फूलती हैं. मूल्यांकन के लिए धैर्य जरूरी है.

  1. August 16, 2021

    […] Please click here to read the original poem in Hindi. […]

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